हम कैसे विश्वगुरू?
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परिवर्तन जरूरी है पर किस कीमत पर |
कोन कहता है हम विश्वगुरू हैं?
पहाड़ कटके इमारते बन गई,
जंगल कटके खिड़की दरवाजे बन गये
कल के बीहड़ आज के शहर हो गये,
नदियां नाले हो गई तालाब काले हो गये
झीले गई सूख समन्दर और शक्तिशाली हो गये
कल तक जंगल में रहने वाले जानवर,
आज हम सबके घरवाले हो गए
तोड़ घर उनका ही कहते,
जानवर कैसे मतवाले हो गये
गला घोंट लालची जंगल का,
कहते आज हम शहर वाले हो गये
साथ-साथ थे ज्यों वो हमसाये हो गये,
मुंह बोले अपने और अपने पराये हो गये
भाई-भाई आज मन्दिर-मस्जिद वाले हो गये
उड़ा खिल्ली तहज़ीब-संस्कारों की,
चार किताबें पढ़ नये ज़माने वाले हो गये
सही गलत की समझ नहीं,
कैसे समझाने वाले हो गये
कल जिनके कन्धों पर बैठ घूमें थे,
दिखा आँख कहते,
आज हम कमाने वाले हो गये
दो दिन पहले झूकें थे शीश,
उठा उगंली शिक्षक से कहते
गूरु हो तुम भूत,
अब हम भविष्य वाले हो गये
संभव को बना असम्भव,
नित मौत के मेले प्रारम्भ हो गये
मुहं भीचें-आँखे मिचें,
हम कैसे विश्वगुरु बनना आरंभ हो गये?
हम कैसे विश्व गुरु बनना शुरू हो गये?